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Día de los Muertos

नवंबर की पहली और दूसरी तारीख मेक्सिको में दिया दे लॉस मोरता याने मृतकों के दिन के तौर पर मनाई जाती है। काफी धूम-धाम से लोग अपने मृतकों को याद करते हैं, उनकी याद में आँसू बहाते हैं, और उन्हें उनके पसंदीदा व्यंजन, वाइन आदि परोसते हैं। जैसे अपने यहाँ दिवाली पर खांड की मिठाइयां बनाई जाती हैं, वैसे ही यहाँ मृतकों की याद में खाँड की, चीनी की खोपड़ियाँ बनाते हैं, उपहार के तौर पर मित्रों को देते हैं, और अपने प्रिय जनों के नाम लिख कर उन्हें अर्पित करते हैं।

वैसे तो सारे मेक्सिको में यह ‘त्यौहार’ जोर- शोर से मनाया जाता है, लेकिन कुछ इलाकों में इसकी धूम बहुत ही ज्यादा होती है। लोग कब्रिस्तान जाते हैं, रोते भी हैं, नाचते भी हैं, वाइन पीते हैं, आँसू बहाते हैं। कुछ जगहों पर कब्रिस्तान से लेकर घर तक गेंदे की पत्तियों से राह बनाते हैं, ताकि इतने दिनों बाद मृतक घर का रास्ता न भूल जाएं। जो ऐसा नहीं कर पाते, वे गेंदे के फूल तो मृतकों को अर्पित करते ही हैं। गेंदा मेक्सिको में मृतकों का फूल है।

जाहिर है कि यह ईसाइयत के आगमन के पहले का चलन है, और सेमेटिक धर्मों के उदय के पहले की हर सभ्यता में किसी न किसी रूप में मिलता है। मृत्यु को जीवन का विरोधी नहीं, पूरक तत्व: जीवन की अपरिहार्य परिणति, बल्कि जीवन के सतत प्रवाह में एक और मोड़े मानने वाली सोच के लिए स्वाभाविक ही है कि प्रिय से बिछुड़़ने के अपरिहार्य मानवीय दुख के बावजूद मृत्यु और मृतकों दोनों से संवाद बनाने की कोशिश करता रहे। नचिकेता को जीवन के परम रहस्यों का बोध मृत्यु के देवता यम ने ही कराय़ा था।

मेक्सिको में दिया दे लॉस मोरता की तारीखें -पहली और दूसरी नवंबर- पारंपरिक आज्तेक काल-गणना पर ही आधारित हैं। रोमन कैथॉलिक ईसाइयत ने इस परंपरा को स्वीकृत और समाहित कर लिया है।

इन दो दिन मेक्सिको में छुट्टी का माहैल रहता है। अफसोस कि मुझे एक तारीख की दोपहर को ही रवाना हो जाना है,  सो मृतकों के श्राद्ध के इस राष्ट्रीय पर्व का साक्षी नहीं बन पाऊंगा, लेकिन उस भावना को तो महसूस कर ही रहा हूं जिस के साथ यह पैगन सभ्यता प्रयत्न करती है, मृत्यु को स्वीकार करने का, औऱ मृतकों को अस्तित्वहीन मानने की बजाय मृत्यु को ही एक वैकल्पिक अस्तित्व मानने का।

आज कालेकियो में मेरी “का्ंफ्रेस” ( याने बातचीत) थी, माहौल में दिया दे लॉस मोरता था। मृत्यु का आतंक नहीं,मृतकों के प्रति कृतज्ञता और प्यार के साथ संवाद कायम करने का प्रयत्न। जिस कमरे में बातचीत उसके ठीक बाहर ही दिया दे लॉस मोरता की झाँकी लगी थी, स्वर्गीय प्रोफेसरों के चित्रों के सामने उनकी पसंदीदा वाइन परोसी गयी थीं. धूप-बत्ती जल रही थी।

लाइब्रेरी में कालेकियो के पहले लाइ्ब्रेरियन के चित्र की झाँकी थी, साथ ही ऐन उजले दुल्हन जैसे कपड़ों में मृत्यु की छवि खड़ी थी, एक और छवि सोफे पर विराजमान थी। चीनी की बनी खोपड़ियां  तो थी हीं, याने मृत्यु के जिन प्रतीकों से भय होता है, यहाँ उनसे सहज संवाद का जतन था।

क्या पैगन सभ्यताएं मृत्यु के बारे में अधिक संवेदनशील, अधिक समझदार नहीं है? मेक्सिको से लेकर आयरलै़ड तक. जापान से लेकर भारत तक?