न.प्र. कमल आ रहे हैं, न.प्र. कमल जा रहे हैं….

फेसबुक के लिए लिखा गया नोट – https://www.facebook.com/notes/purushottam-agrawal/नप्र-कमल-आ-रहे-हैं-नप्र-कमल-जा-रहे-हैं/953161794707747

न.प्र. कमल नगर के प्रसिद्ध व्यक्तियों में से थे, कवि, पत्रकार और राजनीतिक कार्यकर्ता। अपना महत्व भी बखूबी पहचानते थे। गल्ला-मंडी के जिस बाड़े में रहते थे, उसके दरवाजे के ऊपर पाँच बाई तीन फुट का काला बोर्ड टँगवा दिया था, जिस पर चमकीले सफेद अक्षरों में लिखा था- न.प्र.कमल।

आप बाड़े के विशाल दरवाजे से अंदर घुसे, दस कदम चलने पर एक पेड़ के तने पर तख्ती देखेंगे- बाँई तरफ इशारा करते तीर के साथ- न.प्र. कमल। थोड़े फासले पर एक और तख्ती दीवार पर दिखेगी- दाँई तरफ बढ़ने का इशारा करती हुई- न.प्र.कमल। दाँई तरफ कुछ कदम चलिए, निश्चिंत रहिए, भटकने की कोई गुंजाइश नहीं, इस बार बाँई तरफ जाना है, तख्ती बता रही है—न. प्र. कमल। चंद कदम चले और एक दुमंजिले मकान के दरवाजे पर तख्ती है—न.प्र. कमल। मकान के आँगन में पहुँचे तो सीढियाँ हैं और तख्ती ऊपर की तरफ इशारा कर रही है—न.प्र. कमल। सीढ़ियाँ चढ़ कर पहुँचे तो बस पहुँच ही गये, सामने दरवाजा है, और वही—न.प्र. कमल।

न.प्र. कमल के इतने सारे बोर्ड और तीर चर्चा का विषय रहते ही थे। कमलजी गोधाजी की कैंटीन पर कभी-कभार ही आते थे, गंभीर आदमी ठहरे, कहाँ रोज-रोज अड्डेबाजी में पड़ते।

उस दिन प्रकाशजी तरंग में थे।  न.प्र. कमल जैसे ही गोधाजी की कैंटीन पर अवतरित हुए, प्रकाशजी चहक उठे। कमलजी ठीक से स्थापित भी ना हो पाये थे कि प्रकाशजी बोले, ‘कमलजी एक सुझाव है…’

‘हाँ, बोलो प्रकाश, बोलो…’

‘जनता की सुविधा के लिए इतने सारे बोर्ड तो आपने लगवा ही रखे हैं…’

‘हाँ भई, लोग इधर-उधर भटकते रहें, अच्छा नहीं लगता …’

‘जी, वही तो, आखिरकार आप का तो जन्म ही  राष्ट्र को सही रास्ता दिखाने के लिए  हुआ है।  बस दो बोर्ड और बनवा लें तो किसी कन्फ्यूजन की गुंजाइश ही न रहे, एक छाती पर लटकाने के लिए- न.प्र. कमल आ रहे है, एक पीठ के  लिए– न.प्र. कमल जा रहे हैं…’

 

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